Surya Dev Puja: कैसे प्रकट हुए थे भगवान सूर्य देव?इस विधि से करें सूर्य देव की पूजा,दुश्मनों पर मिलेगी विजयसूर्य देव कथा: हिंदू धर्म में सूर्य को देवता का रूप माना जाता है। भगवान सूर्य देव के कारण ही पृथ्वी प्रकाशित है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य देव की नियमित पूजा करने से तेज और सकारात्मक शक्ति मिलती है। ज्योतिषियों के अनुसार नवग्रहों में सूर्य को राजा का दर्जा प्राप्त है। विज्ञान में भी बताया गया है कि सूर्य के बिना पृथ्वी पर जीवन असंभव है इसलिए वेदों में इसे जगत की आत्मा भी कहा गया है। लेकिन भगवान सूर्य देव की उत्पत्ति कैसे हुई यह सवाल हर किसी के मन में आता है।
इस प्रकार सूर्य देव का जन्म हुआ:-
पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा के पुत्र मरीचि और मरीचि के पुत्र महर्षि कश्यप का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्रियों दिति और अदिति से हुआ था। अदिति इस बात से दुखी थी कि दैत्यों और देवताओं में परस्पर लड़ाई होती रहती थी। तब अदिति ने सूर्यदेव की आराधना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। कुछ समय बाद अदिति गर्भवती हो गई। इसके बाद भी उन्होंने कठोर व्रत नहीं छोड़ा।
महर्षि कश्यप को चिंता होने लगी कि इससे अदिति के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। महर्षि कश्यप ने अदिति को समझाया तो उसने कहा कि बालक को कुछ नहीं होगा, क्योंकि वह स्वयं सूर्य का रूप है। कुछ समय बाद एक तेजस्वी बालक का जन्म हुआ, जिसने देवताओं की रक्षा की और राक्षसों का वध किया। अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने के कारण सूर्य देव को आदित्य भी कहा जाता है। यह भी कहा जाता है कि अदिति ने एक हिरण के अंडे को जन्म दिया था, जिसका नाम मार्तंड रखा गया। इस प्रकार सूर्य देव का जन्म हुआ। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रोज सुबह सूर्य देव की पूजा करने और जल चढ़ाने से जातकों पर उनकी कृपा बनी रहती है।
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Surya Dev Pooja on Sunday:-
समस्त ब्रह्मांड को प्रकाशित करने वाले भगवान भास्कर न सिर्फ सम्पूर्ण संसार के कर्ताधर्ता है बल्कि नवग्रहों के अधिपति भी माने जाते हैं। सूर्य देव एक ऐसे देव हैं जिनके दर्शन के बिना किसी के भी दिन का आरंभ नहीं होता है। रविवार का दिन सूर्य देव को समर्पित है। भगवान सूर्य का दिन होने के कारण रविवार को भगवान सूर्य का उपासना बेहद ही पुण्यकारक माना जाता है। सूर्यदेव को हिरण्यगर्भ भी कहा जाता है। हिरण्यगर्भ यानी जिसके गर्भ में ही सुनहरे रंग की आभा है। इनकी कृपा दृष्टि प्राप्त करने के लिए रविवार के दिन सूर्य भगवान का विधिवत पूजा पाठ करके जल चढ़ाना चाहिए। ऐसा करने से भगवान सूर्य की कृपा हमारे परिवार पर बनी रहती है। उदयगामी सूर्य को प्रणाम करना प्रगति की निशानी है। इसीलिए सुबह-सुबह स्नान करके उगते सूर्य को देखना चाहिए। इससे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
सूर्य देव के पूजा की विधि:-
1.सूर्यदेव की पूजा के लिए सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। इसके पश्चात् उगते हुए सूर्य का दर्शन करते हुए उन्हें ॐ घृणि सूर्याय नम: कहते हुए जल अर्पित करें। सूर्य को दिए जाने वाले जल में लाल रोली, लाल फूल मिलाकर जल दें।
2.सूर्य पूजन के लिए तांबे की थाली और तांबे के लोटे का उपयोग करें। लाल चंदन और लाल फूल की व्यवस्था रखें। एक दीपक लें।
3.लोटे में जल लेकर उसमें एक चुटकी लाल चंदन का पाउडर और लाल फूल भी डाल लें। थाली में दीपक और लोटा रख लें।
4.ॐ सूर्याय नमः मंत्र का जप करते हुए सूर्य को प्रणाम करें। लोटे से सूर्य देवता को जल चढ़ाएं। सूर्य मंत्र का जप करते रहें
5.अर्घ्य समर्पित करते समय नजरें लोटे के जल की धारा की ओर रखें। जल की धारा में सूर्य का प्रतिबिम्ब एक बिन्दु के रूप में जल की धारा में दिखाई देगा।
6.सूर्य को अर्घ्य समर्पित करते समय दोनों भुजाओं को इतना ऊपर उठाएं कि जल की धारा में सूर्य का प्रतिबिंब दिखाई दे। सूर्य देव की आरती करें। सात प्रदक्षिणा करें व हाथ जोड़कर प्रणाम करें।
उगते हुए सूर्य को प्रणाम करने से उसका दर्शन करने से हमारे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। हमारी दिनचर्या नियमित बनती है। कारोबार में सफलता प्राप्त होती है। इसके लिए प्रातः काल उठकर सूर्यदेव को नमन करना चाहिए।
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