महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय, जयंती 2022, निबंध|Maharshi Valmiki Biography in Hindi

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महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय का जीवन परिचय

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कौन थे महर्षि बाल्मीकि ?

महर्षि बाल्मीकि एक डाकू थे और भील जाति में उनका पालन पषण हुआ लेकिन वह भील जाति के नहीं थे वास्तव में बाल्मीकि जी प्रचेता के पुत्र थे जो पुराणों के अनुसार रचयिता ब्रह्मा जी के पुत्र थे एक दिन दिल्ली की ने बाल्मीकि को चुरा लिया था जिसका उनका पालन पोषण भील समाज में हुआ और वह डाकू बन गए

बाल्मीकि रामायण संक्षिप्त विवरण

जैसा कि आप सभी जानते हैं बाल्मीकि रामायण में संस्कृत में महाकाव्य रामायण की रचना की थी, जिसकी प्रेरणा उन्हें ब्रह्मा जी ने दी थी रामायण में भगवान विष्णु के अवतार राम चंद्र जी के चरित्र का विवरण किया गया है इसमें 25000 सालों को के बारे में बताया गया है इनकी अंतिम साथ कभी तो मैं

बाल्मीकि महर्षि के जीवन का विवरण हैमहर्षि जी ने श्री रामचरित का चित्र में किया उन्होंने माता सीता को अपने आश्रम में रख उन्हें तक शादी बाद में राम एवं सीता के पुत्र लव कुश को ज्ञान भी दिए

वाल्मीकि जयंती कब मनाई जाती हैं (Valmiki Jayanti 2022)

वाल्मीकि जी का जन्म आश्विन मास की पूर्णिमा को हुआ था, इसी दिन को हिन्दू धर्म कैलेंडर में वाल्मीकि जयंती कहा जाता हैं. इस वर्ष वाल्मीकि जयंती 9 अक्टूबर, को मनाई जाएगी.उत्तरभारतीय वाल्मीकि जयंती को ‘प्रकट दिवस’ रूप में मनाते हैं।

वाल्मीकि जयंती का महत्व (Mahatv)

–महर्षि बाल्मीकि एक आदि कवि थे इन्होंने श्लोक का जन्मदाता भी माना जाता है महर्षि बाल्मीकि जी ने संस्कृत के प्रथम श्लोक को लिखा था इस जयंती को प्रकट दिवस के रूप में मनाया जाता है

वाल्मीकि ऋषि का इतिहास और बाल्यकाल

 माना जता है कि वाल्मीकि जी महर्षि कश्यप और अदिति के नौंवे पुत्र प्रचेता की संतान हैं. उनकी माता का नाम चर्षणी और भाई का नाम भृगु था. बचपन में उन्हे एक भील चुरा ले गया था। जिस कारण उनका लालन-पालन भील प्रजाति में हुआ। इसी कारण वह बड़े हो कर एक कुख्यात डाकू – डाकू रत्नाकर बने और उन्होंने जंगलों में निवास करते हुए अपना काफी समय बिताया।

वाल्मीकि ऋषि परिचय

 वाल्मीकि ऋषि वैदिक काल के महान ऋषि बताए जाते हैं। धार्मिक ग्रंथ और पुराण अनुसार वाल्मीकि नें कठोर तप अनुष्ठान सिद्ध कर के महर्षि पद प्राप्त किया था। परमपिता ब्रह्मा जी की प्रेरणा और आशीर्वाद पा कर वाल्मीकि ऋषि नें भगवान श्री राम के जीवनचरित्र पर आधारित महाकाव्य रामायण की रचना की थी। ऐतिहासिक तथ्यों के मतानुसार आदिकाव्य श्रीमद वाल्मीकि रामायण जगत का सर्वप्रथम काव्य था।महर्षि वाल्मीकि नें महाकाव्य रामायण की रचना संस्कृत भाषा में की थी।

रत्नाकर से वाल्मीकि तक का सफरभील प्रजाति में पले-बढ़े डाकू रत्नाकर लोगों को लूट कर अपना गुजारा चलाते थे। कई बार वह लोगों की हत्या भी कर देते थे। इसी पाप कर्म में लिप्त रत्नाकर जब एक बार जंगल में किसी नए शिकार की खोज में थे तब उनका सामना नारदजी से हुआ। रत्नाकर नें लूटपाट के इरादे से नारद मुनि को बंदी बना लिया।

तब नारदजी नें उन्हे रोकते हुए केवल एक सवाल पूछा, “यह सब पाप कर्म तुम क्यों कर रहे हो?”

इस सवाल के उत्तर में रत्नाकर नें कहा कि ह यह सब अपने स्वजनों के लिए कर रहा है। तब नारद मुनि बोले –

“क्या तुम्हारे इस पाप कर्म के फल भुगतानमें भी तुम्हारे परिवारजन तुम्हारे हिस्सेदार बनेंगे?”

इसपर रत्नाकर नें बिना सोचे ‘हां’ बोल दिया।

तब नारद जी नें रत्नाकर से कहा की एक बार अपने परिवार वालों से पूछ लो, फिर में तुम्हें अपना सारा धन और आभूषण स्वेच्छा से अर्पण कर के यहाँ से चला जाऊंगा।

रत्नाकर नें उसी वक्त अपने एक-एक स्वजन के पास जा कर, अपने पाप का भागीदार होने की बात पूछी। लेकिन किसी एक नें भी हामी नहीं भरी। इस बात से डाकू रत्नाकर को बहुत दुख हुआ और आघात भी लगा। इसी घटना से उसका हृदय परिवर्तन हो गया। रत्नाकर नें इस प्रसंग के बाद पाप कर्म त्याग दिये और जप तप का मार्ग अपना लिया। और फिर कई वर्षों की कठिन तपस्या के फल स्वरूप उन्हे महर्षि पद प्राप्त हुआ।

वाल्मीकि नाम कैसे पड़ा?

तप करते समय दीमकों ने इनके ऊपर अपनी बांबी बना ली थी. तपस्या समाप्त होने पर जब ये दीमक की बांबी जिसे ‘वाल्मीकि’ भी कहते हैं, तोड़कर निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे.

महाकाव्य रामायण लिखने की प्रेरणा

पाप कर्म में लिप्त रत्नाकर को हृदय परवर्तन होने पर नारद जी नें राम नाम जपने की सलाह दी थी। तब रत्नाकर समाधि में बैठ कर राम नाम जप करते करते गलती से मरा-मरा जप करने लगे। इसी कारण उनका देह दुर्बल होता चला गया। उनके शरीर पर चीटीयां रेंगने लगी। यह सब उनके पूर्व समय के पाप कर्मों का भुगतान था। घोर तपस्या के बाद जब उनहोंनें ब्रह्माजी को प्रसन्न किया तब स्वयं ब्रह्मा जी नें वाल्मीकि को रामायण महाकाव्य लिखने की प्रेरणा दी।

महर्षि वाल्मीकि द्वारा प्रथम श्लोक की रचना

नदी किनारे तपस्या करने हेतु जब वाल्मीकि पहुंचे तब उन्होने देखा की सारस पक्षी का एक जोड़ा प्रेमालाप में मग्न था। तभी एक शिकारी पारधि नें नर पक्षी पर वाण चला कर उसकी हत्या कर दी।इस दुष्कृत्य को देख महर्षि वाल्मीकि के मुख से यह श्लोक निकल पड़ा:

मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥

श्लोक का अर्थ: अरे बहेलिये, तूने काममोहित मैथुनरत सारस पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं होगी।

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वाल्मीकि रामायण से जुड़े रोचक तथ्य

महर्षि वाल्मीकि स्वयम रामायण काल के थे और वे भगवान् राम से मिले थे, इसीलिए बहुत लोग वाल्मीकि रामायण को ही सटीक मानते हैं।

इस महाकाव्य में कुल मिला कर चौबीस हज़ार श्लोक का निर्माण किया गया है।

श्री राम के त्यागने के बाद महर्षि वाल्मीकि नें ही माँ सीता को अपने आश्रम में स्थान दे कर उनकी रक्षा की थी।

ऋषि वाल्मीकि नें श्री राम और देवी सीता के दो तेजस्वी पुत्रों लव और कुश को ज्ञान प्रदान किया था।

सारस पक्षी के वध पर जो श्लोक महर्षि वाल्मीकि के मुख से निकला था वह परमपिता ब्रह्मा जी की प्रेरणा से निकला था। जो बात स्वयं ब्रह्मा जी नें उन्हे बताई थी। उसी के बाद उन्होने रामायण की रचना की थी।

महर्षि वाल्मीकि खगोल विद्या, और ज्योतिष शास्त्र के प्रकांड पंडित थे।

विष्णुधर्मोत्तर पुराण के अनुसार त्रेता युग में जन्मे महर्षि वाल्मीकि ने ही कलयुग में गोस्वामी तुलसीदास जी रूप में जन्म लिया और “रामचरितमानस” की रचना की।

महर्षि वाल्मीकि जीवनकथा सार

जीवन में किए गए सत्कर्म और पापकर्म का फल प्राणी को स्वयं ही भुगतना पड़ता है। जन्म और लालन-पालन कहाँ होगा यह मनुष्य के स्वयं के हाथ में नहीं है। ज्ञानदर्शन हो जाने पर पाप कर्म त्याग कर धर्म के मार्ग पर आ जाने से रत्नाकर डाकू महर्षि वाल्मीकि बन सकते हैं तो एक आम इन्सान भी दुष्कर्म त्याग कर अच्छा इन्सान बन सकता है। पश्चाताप की राह कठिन होगी पर एक बार पाप नष्ट होने पर जीवआत्मा पर परमात्मा की विशेष कृपा दृष्टि होगी।

FAQ: Q : वाल्मीकि का असली नाम क्या है ?

Ans : वाल्मीकि का असली नाम डाकू रत्नाकर है.

क्वा : ल्मीकि का शाब्दिक अर्थ क्या है?

Ans : वाल्मीकि का शाब्दिक अर्थ वो है जो चींटी-पहाड़ियों से पैदा हुआ हो. उनकी तपस्या के दौरान उनके चारों ओर बनी विशाल चींटी-पहाड़ियों के रूप में उन्हें इस नाम से जाना जाने लगा. उन्हें महाकाव्य रामायण लिखने के बाद जाना जाता है. महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में रामायण लिखी थी.

Q : वाल्मीकि कौन सी कास्ट के थे ?

Ans : वाल्मीकि एक डाकू थे जिनका जन्म भील जाति में हुआ था. हालांकि वे भील जाति के नहीं माने जाते हैं, उन्हें ब्रम्हा जी का पुत्र कहा जाता है.

Q: बाल्मीकि जी का जन्म कौन से देश में हुआ था

Ans: बाल्मीकि जी का जन्म भारत में हुआ था

Q : वाल्मीकि का दूसरा नाम क्या है?

ans: वाल्मीकि

Q : रामायण की रचना कब की गई

Ans :तुलसीदास रामायण नाम रामचरित मानस है और इसकी रचना सोलहवीं शताब्दी के अंत में गोस्वामी तुलसीदास ने अवधि बोली में की. जबकि वाल्मीकि रामायण कोई तीन हज़ार साल पहले संस्कृत में लिखी गई थी.