Sant Guru Ravidas Jayanti 2024: संत गुरु रविदास जी का जीवन परिचय, जयंती, दोहे, निबंध,अनमोल वचन

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल माघ पूर्णिमा के दिन रविदास जयंती मनाई जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन गुरु रविदास का जन्म हुआ था। जातिवाद के खिलाफ किए गए प्रयासों के कारण उन्हें आध्यात्मिक व्यक्ति के साथ एक समाज सुधारक के रूप में भी याद किया जाता है। संत रविदास जी का जन्म वाराणसी के एक गांव में हुआ था। मोची परिवार में जन्मे रविदास जी (Guru Ravidas) को लोग संत रविदास, गुरु रविदास, रैदास और रोहिदास जैसे कई नामों से जानते हैं।इस साल रविदास जयंती 24 फरवरी, 2024 को मनाई जाएगी। 

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संत रविदास जयंती कब हैं | Sant Ravidas Jayanti 2024

संत रविदास जी का जन्म सन 1398 में माघ पूर्णिमा के दिन हुआ था। रविदास जी का जन्म रविवार के दिन होने के कारण इनका नाम  रविदास  रखा गया। इन्हें रामानंद जी का शिष्य भी माना जाता है।  रविदास  जयंती हर साल माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। वर्ष 2024 में रविदास जयंती 24 फरवरी को मनाई जाएगी।

संत गुरु रविदास का जीवन परिचय  (Guru Ravidas Biography and History)

पूरा नामगुरु रविदास जी
अन्य नामरैदास, रोहिदास, रूहिदास
जन्म1377 AD
जन्म स्थानवाराणसी, उत्तरप्रदेश
पिता का नामश्री संतोख दास जी
माता का नामश्रीमती कलसा देवी की
दादा का नामश्री कालू राम जी
दादी का नामश्रीमती लखपति जी
पत्नीश्रीमती लोना जी
बेटाविजय दास जी
मृत्यु1540 AD (वाराणसी)

गुरु रविदास जी का जन्म संवत 1433 में माघ माह की पूर्णिमा तिथि के दिन हुआ था और इस दिन को रविदास जयंती के नाम से मनाया जाता है. संत रविदास के पिता का नाम रग्घु या राघवदास था और माता का नाम करमा बाई थी. संत रविदास की एक बहन भी थी जिसका नाम रविदासिनी था. संत रविदास के पिता का जूते बनाने का अपना पैतृक व्यवसाय था और उन्होंने जीवनभर पूरी मेहनत व लगन के साथ अपना काम किया था.

रविदास जी ने भी अपने पिता की तरह ही अपना आजीविका के लिए पैतृक कार्य को अपनाया और पूरी लगन के साथ कार्य किया. अपना कार्य करते समय वह भगवान की भक्ति भी करते रहते थे. भगवान की भक्ति उनके मन में रम गई थी और उन्होंने अपने कार्य को संत सेवा का माध्यम बना लिया. कहते हैं कि संत रविदास के पास कुछ आलौकिक शक्तियां थीं और उनके चमत्कारों की वजह से ही कुष्ठ रोगी ठीक हो जाया करते थे. संत ​रविदास जी लोगों को दोहे सुनाया करते थे और उनके दोहों में ऐसी शिक्षाएं छिपी होते हैं जो समाज में जात-पात के भेद को दूर करती थीं.

गुरु रविदास जी की आध्यात्मिक यात्रा:

समय के साथ, गुरु रविदास जी की भक्ति गहरी हो गई और वह राम रूप के एक समर्पित अनुयायी बन गए, उन्होंने राम, रघुनाथ, राजा राम चंद्र, कृष्ण, हरि और गोविंद के नामों का जाप करके भगवान के प्रति अपनी गहरी भावनाओं को व्यक्त किया।

संत गुरु रविदास जी की शिक्षा (Sant Ravidas Education) –

बचपन में संत रविदास जी गुरु पंडित शारदा नंद के के यहाँ पड़ने जाया करते थे लेकिन उच्च जाति के लोगों ने वहां पड़ने पर रोक लगा दी थी। हालाँकि पंडित शारदा ने यह महसूस करते थे की रविदास कोई सामान्य बालक न होकर एक ईश्वर के द्वारा भेजी गयी संतान है, फिर पंडित शारदानंद ने रविदास को अपनी पाठशाला में बुलाया और रविदास को पढ़ाने लगे। वो बहुत ही तेज और होनहार थे, पंडित शारदा नंद उनसे और उनके व्यवहार से बहुत प्रभावित रहते थे उनका विचार था कि एक दिन रविदास आध्यात्मिक रुप से प्रबुद्ध और महान सामाजिक सुधारक के रुप में जाने जायेंगे।

उनके पाठशाला में पंडित शारदानंद का पुत्र उनका मित्र था। एक दिन वह एक साथ लुका-छिपी खेल खेलने लगे। पहली बार रविदास जी जीते और दूसरी बार उनके मित्र की जीत हुयी। अगली बार, रविदास जी की बारी थी लेकिन अंधेरा होने की वजह से खेल को अगले दिन सुबह जारी रखने का फैसला किया। दूसरे दिन मित्र न आने की वजह से वह उनके घर गए। घर पहुंचने से पहले ही उनको अपने मित्र की मौत की खबर सुनते ही हक्का-बक्का हो गए। संत रविदास जो को अलौकिक शक्तियां मिली हुए थी। रविदास ने अपने मित्र से कहा कि उठो ये सोने का समय नहीं है दोस्त, ये तो लुका-छिपी खेलने का समय है। रविदास के ये शब्द सुनते ही उनके मित्र फिर उठे। यह सब देखते ही सभी लोग चकित रह गये।

संत रविदास का आगे का जीवन (Sant Ravidas life history) 

रविदास जी जैसे जैसे बड़े होते जाते है, भगवान राम के रूप के प्रति उनकी भक्ति बढ़ती जाती है. वे हमेशा राम, रघुनाथ, राजाराम चन्द्र, कृष्णा, हरी, गोविन्द आदि शब्द उपयोग करते थे, जिससे उनकी धार्मिक होने का प्रमाण मिलता था.

रविदास जी मीरा बाई के धार्मिक गुरु हुआ करते थे. मीरा बाई राजस्थान के राजा की बेटी और चित्तोर की रानी थी. वे रविदास जी की शिक्षा से बहुत अधिक प्रभावित थी और वे उनकी एक बड़ी अनुयायी बन गई थी. मीरा बाई ने अपने गुरु के सम्मान में कुछ पक्तियां भी लिखी थी, जैसे – ‘गुरु मिलया रविदास जी..’ मीरा बाई अपने माँ बाप की एकलौती संतान थी, बचपन में इनकी माता के देहांत के बाद इनके दादा ‘दुदा जी’ ने इनको संभाला था. दुदा जी रविदास जी के बड़े अनुयाई थे, मीरा बाई अपने दादा जी के साथ हमेशा रविदास जी से मिलती रहती थी. जहाँ वे उनकी शिक्षा से बहुत प्रभावित हुई. शादी के बाद मीरा बाई ने अपनी परिवार की रजामंदी से रविदास जी को अपना गुरु बना लिया था. 

मीरा बाई अपनी रचनाओं में लिखती है, उन्हें कई बार मृत्यु से उनके गुरु रविदास जी ने बचाया था.

गुरु रविदास जी का वैवाहिक जीवन

भगवान के प्रति उनके प्यार और भक्ति की वजह से वह अपने पिता के व्यवसाय में मदद नहीं कर पा रहे थे। अपने परिवार के व्यवसाय से कोई रूचि नहीं थी इस वजह से उनके पिता ने रविदास की छोटी उम्र में श्रीमती लोना देवी से विवाह कर दिया था जिसके बाद उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम विजयदास पड़ा।

संत रविदास सांसारिक मोह की वजह से और पारिवारिक व्यवसाय में रूचि न होने के कारण उनके पिता ने पारिवारिक संपत्ति से अलग कर दिया। जिसके बाद रविदास अलग रहने लगे और सांसारिक जीवन को निभाने के लिये पूरी तरह से अपनी सामाजिक मामलों से जुड़ गये।

रविदास जी सामाजिक कार्य करने के साथ साथ धार्मिक होने का भी बढ़ावा देते थे। भगवान के रूप के प्रति उनकी भक्ति बढ़ने के कारण विभिन्न स्वरुप राम, रघुनाथ, राजा राम चन्द्र, कृष्णा, गोविन्द आदि के नामों का इस्तेमाल करते थे।

गुरु रविदास जी सामाजिक काम (Sant Ravidas his teachings)

रविदास जी हमेशा जाति और छुआ-छूत जैसे अन्याय को दूर करना चाहते थे। वह बचपन से ही जाति भेदभाव का सामना किया। उनका कहना था की व्यक्ति रंगो ,जाति के नाम से नहीं जाना जाता , बल्कि कर्मो से पहचाना जाता है। उन्होंने समाज में फैले छुआछूत के प्रचलन को खत्म करने की शिक्षा दी। ;पहले से ही छोटे वर्ग के लोगो को नाकारा जाता है और उनको पक्के मकान की जगह कच्चे मकान या झोपड़ियों में रहने को कहते थे। समाज में फैले छुआछूत की वजह से उनका मंदिर में पूजा करना, स्कूल में पढाई करना, गाँव में दिन के समय निकलना पूरी तरह वर्जित था, उन्होंने समाज की यह दुर्दशा देख के समाज को इस छुआछूत से बदलने की ठानी और शिक्षा देने की शुरुआत की।

रविदास जी यही सन्देश देते थे कि ‘भगवान् ने इन्सान को बनाया है, न की इन्सान ने भगवान् को’ बनाया है। रविदास जी ने शिक्षा दी कि भगवान ने सबको सामान रूप दिया है इस लिए समान अधिकार मिलने चाहिए।

रविदास जी के पिता की मृत्यु (Guru Ravidas Father Death) –

रविदास जी के पिता की मौत के बाद उन्होंने अपने पड़ोसियों से मदद मांगी, ताकि वे गंगा के तट पर अपने पिता का अंतिम संस्कार कर सकें. ब्राह्मण इसके खिलाफ थे, क्यूंकि वे गंगा जी में स्नान किया करते थे, और शुद्र का अंतिम संस्कार उसमें होने से वो प्रदूषित हो जाती. उस समय गुरु जी बहुत दुखी और असहाय महसूस कर रहे थे, लेकिन इस घड़ी में भी उन्होंने अपना संयम नहीं खोया और भगवान से अपने पिता की आत्मा की शांति के लिए प्राथना करने लगे. फिर वहां एक बहुत बड़ा तूफान आया, नदी का पानी विपरीत दिशा में बहने लगता है. फिर अचानक पानी की एक बड़ी लहर मृत शरीर के पास आई और अपने में सारे अवशेषों को अवशोषित कर लिया. कहते है तभी से गंगा नदी विपरीत दिशा में बह रही है

रविदास और मुगल शासक बाबर (Sant Ravidas and Mugal King Babar) –

भारत इतिहास के अनुसार बाबर मुगल साम्राज्य का पहला राजा था जो 1526 में पानीपत का युद्ध जीतने के बाद दिल्ली पर कब्ज़ा किया। वह संत रविदास की आध्यात्मिक शक्तियों से पहले से ही परिचित था और वह हुमायुँ के साथ गुरु जी से मिलने जाता है। वह जाते ही गुरु जी को सम्मान देने के लिये उनके पैर छूए हालाँकि आशीर्वाद के बजाय उसे गुरु जी से सजा मिली क्योंकि उसने लाखों निर्दोष लोगों की हत्याएँ की थी। गुरु जी ने उसे गहराई से समझाया जिसने बाबर को बहुत प्रभावित किया और इसके बाद वो भी संत रविदास जी की तरह समाज सेवा करने लगा।

गुरु रविदास जी की मृत्यु (Guru Ravidas Date of Death)

गुरु रविदास जी की सच्चाई, मानवता, भगवान् के प्रति प्रेम, और बहुत से कारणों की वजह से बदलते समय के साथ संत रविदास के अनुयायीयों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी। दूसरी तरफ, कुछ ब्राह्मण गुरु जी को मारने की योजना बना रहे थे इस वजह से उन लोगों ने गाँव से दूर एक सभा का आयोजन किया।हालाँकि गुरु जी को अपनी दैवीय शक्ति की वजह से पहले से ही सब कुछ पता चल गया था।

जैसे ही सभा का सुभारंभ करते है , गुरु जी उन्ही के एक साथी भल्ला नाथ के रुप में दिखायी दिये जो तब गलती से मारा गया था। गुरु जी थोड़ी देर बाद जब अपने कक्ष में शंख बजाते है, तो सब अचंभित हो जाते है. अपने साथी को मरा देख वे बहुत दुखी होते है, और दुखी मन से गुरु जी के पास जाते है.

हालाँकि, उनके कुछ अनुयाईयों का मानना है कि गुरु रविदास जी की मृत्यु 120 या 126 साल में हो गयी थी। कुछ का मानना है उनका निधन वाराणसी में 1540 एडी में हुई थी।

रविदास स्मारक (Sant Ravidas smarak park) –

वाराणसी में रविदास जी की याद में बहुत से स्मारक बनाये गए है. रविदास पार्क, रविदास घाट, रविदास नगर, रविदास मेमोरियल गेट आदि.

संत  रविदास जी के अनमोल वचन

  •  इंसान छोटा या बड़ा अपने जन्म से नहीं बल्कि अपने कर्मों से होता है. व्यक्ति के कर्म ही उसे ऊँचा या नीचा बनाते हैं.
  • अज्ञानता के कारण सभी लोग जाति और पंथ के चक्र में फंस गए हैं. अगर वह इस जातिवाद से बाहर नहीं निकला तो एक दिन जाति की यह बीमारी पूरी मानवता को निगल जाएगी.
  •  किसी की जाति नहीं पूछनी चाहिए क्योंकि सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं. यहां कोई जाति, बुरी जाति नहीं है.
  •  भले ही कोई हजारों वर्षों तक भगवान का नाम लेता रहे, लेकिन जब तक मन शुद्ध न हो, तब तक ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है.
  • जो मनुष्य केवल शारीरिक स्वच्छता और बाहरी सुंदरता पर ध्यान देता है और मन की पवित्रता पर ध्यान नहीं देता है, वह निश्चित रूप से नरक में जाएगा.
  • जो मनुष्य केवल शारीरिक स्वच्छता और बाहरी सुंदरता पर ध्यान देता है और मन की पवित्रता पर ध्यान नहीं देता है, वह निश्चित रूप से नरक में जाएगा.
  • जब तक क्षमता है, मनुष्य को ईमानदारी से कमाना और खाना चाहिए.
  •  केवल ऊँचे कुल में जन्म लेने से कोई ब्राह्मण नहीं हो जाता. असली ब्राह्मण बो हे  जो ब्रह्म (ब्रहात्मा) को जानता है. 

संत  रविदास  जी के दोहे(Sant Ravidas ji Ke Dohe)

जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात

करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास

कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै

 जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड मेँ बास
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास

कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा

रैदास कहै जाकै हदै, रहे रैन दिन राम
सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम

ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन।
पूजिए चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीन।।

रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच।
नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।।

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय।।

रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्‍यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय।।

गुरु रविदास जयंती 2024 में कब है 

गुरु रविदास की 645वीं जयंती 24 फरवरी दिन शनिवार को है

रविदास का जन्म स्थान क्या है?

रविदास जी का जन्म वाराणासी के गांव गोबर्धनपुर में हुआ था

 संत रविदास जी का जन्म कब हुआ ?

Ans : 1377 AD

संत रविदास जी की मृत्यु कब हुई?

Ans : 1540 AD (वाराणसी)

रविदास किस लिए प्रसिद्ध है?

उत्तर भारतीय भक्ति आंदोलन के सबसे प्रसिद्ध संतों में से एक थे। 

संत रविदास जी के गुरु कौन थे

सतगुरु रविदास के गुरु रामानन्द वैष्णव शाखा से थे 

रविदास कौन समाज के थे?

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में एक मोची परिवार में हुआ