एकादशी व्रत क्या है
देवशयनी एकादशी व्रत एक हिन्दू व्रत है जो हर मासिक एकादशी तिथि को मनाया जाता है। एकादशी शब्द संस्कृत भाषा में “ग्यारह” (एकादश) को दर्शाता है, जो एक और ग्यारह जैसा होता है, जिसे हिन्दू पंचांग में हर माह की ग्यारहवीं तिथि के रूप में जाना जाता है। यह तिथि हिन्दू पंचांग में चंद्रमा की स्थिति आधारित होती है।
एकादशी व्रत को विशेष धार्मिक और स्पिरिचुअल महत्व प्राप्त है। इस व्रत को रखने से मान्यता है कि व्रती को भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है और उनके पापों का प्रायश्चित्त होता है। इसे करने से मान्यता है कि व्रती के गुणों में सुधार होता है, उनकी आत्मा का शुद्धिकरण होता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
एकादशी व्रत के दौरान, व्रती विशेष खाद्य पदार्थों और दृढ़ता के साथ उपवास रखते हैं। यह व्रत कई लोगों द्वारा केवल निराहार व्रत के रूप में भी रखा जाता है, जिसमें खाद्य पदार्थों का पूर्णतया त्याग किया जाता है। एकादशी व्रत में अनाज, पुल्स, धान्य, मसाले, प्याज, लहसुन, आम, अमरूद, इमली, चीनी, तेल, गर्मी उत्पन्न करने वाले तत्वों का त्याग किया जाता है। व्रत के अनुसार, यह सभी चीजें ब्रह्मा रूपी देवता की सेवा करने के लिए संरक्षित रखी जाती हैं।
एकादशी व्रत को विशेष श्रद्धा और ध्यान के साथ रखा जाता है। इस व्रत के दौरान, व्रती विष्णु भगवान के नामों का जाप, कीर्तन, पूजा और पाठ करते हैं। उनका लक्ष्य अपने मन को ईश्वर की ओर ध्यानित करने में लगाना होता है।
एकादशी व्रत को अनुष्ठान करने से पूर्व, व्रती को आदेश और आचार्यों के संदेशों का पालन करना चाहिए। यह व्रत शुभ मुहूर्त में शुरू किया जाना चाहिए और नियमित रूप से पूरा किया जाना चाहिए।
यह व्रत हिन्दू धर्म के अनुसार बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है और विभिन्न उपास्य देवताओं की पूजा में एक मासिक आयोजन होता है। यह व्रत सातवें स्वर्ग की प्राप्ति और पापों के क्षय की आशा के साथ भक्ति और साधना का महान अवसर है।
देवशयनी एकादशी व्रत क्यों करना चाइये
एकादशी व्रत हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण रूप से मान्यता प्राप्त करने वाला एक धार्मिक व्रत है। यह व्रत हर मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है, जो हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आठीं और द्वादशीं तिथियों के बीच पड़ती है। एकादशी व्रत का मुख्य उद्देश्य भगवान विष्णु की पूजा, भक्ति, और समर्पण करना होता है।
एकादशी को विशेष मान्यता प्राप्त है क्योंकि इस दिन विष्णु भगवान की उपासना और पूजा से अधिक पुण्य मिलता है। विशेष रूप से एकादशी को व्रत रखने से मान्यता है कि भगवान विष्णु पुरे दिन आसमान में विराजमान होते हैं और उन्हें व्रत रखने वालों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इसलिए, लोग इस दिन निर्जला (बिना पानी के) व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा, भक्ति, स्मरण, ध्यान, और जप करते हैं।
एकादशी व्रत का महत्व अन्य धार्मिक और आध्यात्मिक लाभों के साथ धार्मिक शास्त्रों में वर्णित किया गया है। यह व्रत शरीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक शुद्धि के लिए मान्यता प्राप्त है और इसे विष्णु भगवान की कृपा, आशीर्वाद, और मोक्ष की प्राप्ति का उपाय माना जाता है। इसके अलावा, एकादशी व्रत रखने से श्रद्धा, धैर्य, संयम, सेवाभाव, और सामर्थ्य जैसे गुणों का विकास होता है।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि एकादशी व्रत का अनुष्ठान विष्णु भगवान के भक्तों द्वारा प्राथमिकता से किया जाता है, लेकिन इसे अन्य धार्मिक सम्प्रदायों में भी मान्यता प्राप्त है और वे भी इसे मनाते हैं।
एकादशी का व्रत किसे करना चाहिए?
एकादशी व्रत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो हर महीने की ग्यारहवीं तिथि (एकादशी) को मनाया जाता है। इस व्रत को करने का मुख्य उद्देश्य भगवान विष्णु की पूजा और आराधना करना है। एकादशी व्रत करने से शरीर, मन और आत्मा शुद्ध हो जाती है और इससे भक्त अपने पापों से छुटकारा पा सकता है।
एकादशी व्रत को नियमित रूप से करने की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है, इसे सभी हिंदू व्यक्ति या परिवार के सदस्य अपनी श्रद्धा और भक्ति के अनुसार रख सकते हैं। यह व्रत मुख्य रूप से विष्णु भक्तों द्वारा किया जाता है, लेकिन इसे अन्य देवी-देवताओं की भक्ति में भी रखा जा सकता है।
एकादशी व्रत को त्याग, मोक्ष, ध्यान और अनुष्ठान का माध्यम माना जाता है। व्रत के दौरान भोजन, दान, यज्ञ, पूजा, जागरण आदि करने से भी व्रत का पुण्य अधिक मिलता है। इस व्रत में भोजन का महत्व होता है इसलिए इस व्रत को विभिन्न प्रकार के व्रत और उपवास के रूप में मनाया जाता है।
एकादशी व्रत करने के लिए व्यक्ति को नियमित रूप से जागरण, पूजा, पाठ, मंत्र जाप, ध्यान आदि करना चाहिए। इसके अलावा व्रत करने वाले को व्रत के दिन विशेष भोजन खाने से बचना चाहिए और सातवें दिन यानी द्वादशी को व्रत तोड़ने के लिए भोजन और दान देना चाहिए।
धार्मिक मान्यता है कि एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को भगवान का आशीर्वाद मिलता है और उसकी आत्मा शुद्ध हो जाती है। इसलिए यदि किसी को इस व्रत पर विश्वास है और वह इसे करना चाहता है तो वह एकादशी व्रत कर सकता है।
एकादशी कब है 2023
पंचांग के हिसाब से साल 2023 में जून महा में एकादशी गुरुवार को 29 जून को देवशयनी एकादशी मनाई जाएगी।
एकादशी का व्रत किसे करना चाहिए?
एकादशी व्रत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो हर महीने की ग्यारहवीं तिथि (एकादशी) को मनाया जाता है। इस व्रत को करने का मुख्य उद्देश्य भगवान विष्णु की पूजा और आराधना करना है। एकादशी व्रत करने से शरीर, मन और आत्मा शुद्ध हो जाती है और इससे भक्त अपने पापों से छुटकारा पा सकता है।
एकादशी व्रत को नियमित रूप से करने की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है, इसे सभी हिंदू व्यक्ति या परिवार के सदस्य अपनी श्रद्धा और भक्ति के अनुसार रख सकते हैं। यह व्रत मुख्य रूप से विष्णु भक्तों द्वारा किया जाता है, लेकिन इसे अन्य देवी-देवताओं की भक्ति में भी रखा जा सकता है।
एकादशी व्रत को त्याग, मोक्ष, ध्यान और अनुष्ठान का माध्यम माना जाता है। व्रत के दौरान भोजन, दान, यज्ञ, पूजा, जागरण आदि करने से भी व्रत का पुण्य अधिक मिलता है। इस व्रत में भोजन का महत्व होता है इसलिए इस व्रत को विभिन्न प्रकार के व्रत और उपवास के रूप में मनाया जाता है।
एकादशी व्रत करने के लिए व्यक्ति को नियमित रूप से जागरण, पूजा, पाठ, मंत्र जाप, ध्यान आदि करना चाहिए। इसके अलावा व्रत करने वाले को व्रत के दिन विशेष भोजन खाने से बचना चाहिए और सातवें दिन यानी द्वादशी को व्रत तोड़ने के लिए भोजन और दान देना चाहिए।
धार्मिक मान्यता है कि एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को भगवान का आशीर्वाद मिलता है और उसकी आत्मा शुद्ध हो जाती है। इसलिए यदि किसी को इस व्रत पर विश्वास है और वह इसे करना चाहता है तो वह एकादशी व्रत कर सकता है।
देवशयनी एकादशी व्रत कथा
सूर्यवंश में एक महान प्रतापी और सत्यवादी राजा मांधाता थे. वे एक चक्रवर्ती राजा थे. वे अपनी प्रजा की सेवा अपनी संतान की तरह करते थे. सब कोई खुशहाल था. लेकिन एक बार लगातार 3 साल तक उनके राज्य में वर्षा नहीं हुई, जिसके कारण अन्न नहीं हुआ और अकाल पड़ गई. भोजन के साथ ही यज्ञ आदि के लिए भी अन्न नहीं था.
प्रजा अपने राजा के पास आकर इस अकाल से निपटने का आग्रह करती. लेकिन राजा भी विवश थे. उनसे अपनी प्रजा का हाल देखा न गया. एक दिन वे सेना लेकर जंगल में निकल पड़े. वे कई ऋषि और मुनि के आश्रम में गए. काफी दिनों के बाद वे ब्रह्म देव के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में गए. अंगिरा ऋषि को प्रणाम करके राजा ने आने का प्रयोजन बताया।
एकादशी व्रत से होने वाले लाभ
- शारीरिक स्वास्थ्य: एकादशी व्रत का पालन करने से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। व्रत में अन्न और पानी का त्याग करने से पाचन शक्ति मजबूत होती है और शरीर में शुद्धि होती है। इसके साथ ही अन्न प्राणों में उचित संतुलन लाने का कार्य करता है।
- मानसिक तानाशाही कम करना: एकादशी व्रत मानसिक शांति और तानाशाही को कम करने में मदद करता है। यह व्रत मन को शुद्ध करके स्थिरता और ध्यान की स्थिति में लाता है।
- धार्मिक उन्नति: एकादशी व्रत धार्मिक उन्नति में मदद करता है। इसके माध्यम से व्यक्ति अपने आप को ईश्वर के समीप लाने और अध्यात्मिक विकास करने का प्रयास करता है।
- पापों का नाश: एकादशी व्रत का पालन करने से पापों का नाश होता है और अच्छाई का बढ़ावा होता है। इसके माध्यम से मनुष्य अपने कर्मों को शुद्ध करता है और उच्चतम सत्ता के प्रतीक बनता है।
- मातृभूमि के प्रति समर्पण: एकादशी व्रत का पालन करने से व्यक्ति मातृभूमि के प्रति समर्पित होता है। व्रत में आहार त्याग करके प्रकृति के प्रति अभिमान कम होता है और पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ती है।
यहां दिए गए लाभ आमतौर पर एकादशी व्रत के पालन के परिणामस्वरूप होते हैं। हालांकि, धार्मिक मान्यताओं और व्यक्ति के निश्चित संदर्भों पर इसका प्रभाव भी हो सकता है। आपके प्राथमिकताओं और आदर्शों के अनुसार एकादशी व्रत का पालन करना उपयुक्त हो सकता है।
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