भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतार हैं, जिन्हें दशावतार कहा जाता है। ये अवतार विभिन्न युगों में धर्म के संरक्षण और दुष्टों के नाश के उद्देश्य से पृथ्वी पर आए थे।
विष्णु भगवान के दस प्रमुख अवतारों के नाम निन्मलिखित है,
मत्स्यावतार (Matsya Avatar): यह अवतार मत्स्य रूप में था और प्राचीन महाप्रलय के समय मनुष्य मन्दिर को बचाने के लिए आए थे।
कूर्मावतार (Kurma Avatar): इस अवतार में विष्णु भगवान कच्छप (कूर्म) रूप धारण करते हैं, जिन्होंने समुद्र मंथन के समय देवताओं और असुरों की सहायता की।
वराहावतार (Varaha Avatar): भगवान विष्णु ने इस अवतार में सुअर (वराह) के रूप में आकर पृथ्वी को असुर हिरण्याक्ष के हवाले से मुक्त किया।
नरसिंहावतार (Narasimha Avatar): इस अवतार में भगवान विष्णु मनुष्य और सिंह (लायन) के रूप में आए, जब असुर हिरण्यकश्यपु ने अपने पुत्र प्रह्लाद की रक्षा के लिए दुष्टरा तापसी के आदेश पर प्रह्लाद का वध करने की कोशिश की।
वामनावतार (Vamana Avatar): इस अवतार में भगवान विष्णु ब्राह्मण बालक के रूप में आए और असुर महाबली को विजय प्राप्त की थी। विष्णु ने त्रिदेवों की विनती पर त्रिपुरासुर और दैत्यासुरों के बढ़ते अत्याचारों का नाश किया।
परशुराम अवतार (Parashurama Avatar): इस अवतार में भगवान विष्णु ब्राह्मण क्षत्रिय के रूप में आए थे और क्षत्रियों के अत्याचार को रोकने के लिए आए थे।
श्री राम अवतार (Rama Avatar): श्री राम अवतार में भगवान विष्णु रामचंद्र जी के रूप में प्रकट हुए थे। यह अवतार रावण जैसे दुष्ट राक्षस का नाश करने और धर्म की स्थापना के लिए आए थे।
कृष्ण अवतार (Krishna Avatar): इस अवतार में भगवान विष्णु यदु वंशी के रूप में प्रकट हुए थे। श्री कृष्ण गीता के ज्ञान को मानवता में प्रस्तुत करने के लिए आए थे।
बुद्ध अवतार (Buddha Avatar): भगवान विष्णु के इस अवतार में वे गौतम बुद्ध के रूप में प्रकट हुए थे। इस अवतार के माध्यम से विष्णु ने अहिंसा, सम्यग्दृष्टि और मानवीय मुक्ति के लिए मार्गदर्शन किया।
कल्कि अवतार (Kalki Avatar): भगवान विष्णु के इस अवतार में वे कल्कि रूप में प्रकट होंगे, जो कलियुग के अंत में आएंगे और धर्म की पुनर्थापना के लिए युगांतर में प्रवृत्त होंगे।
ये हैं भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतार। हर अवतार का उद्देश्य धर्म स्थापित करना, अधर्म का नाश करना और मानव समाज की रक्षा करना होता है।
भगवान विष्णु के दस अवतारों की कथा और उनके धरती पे आने का उद्देश्य
1.भगवान विष्णु मत्स्यावतार कथा:-
मत्स्यावतार विष्णु के दस अवतारों में से पहला अवतार है। यह कथा पुराणों में प्रमुखता से प्रस्तुत की जाती है। इस कथा के अनुसार, क्रोध प्रजापति नामक एक ऋषि के एक व्रत में उसकी तपस्या की वजह से जल वर्षा रुक गई थी। वर्षा रुकने से भूमि पूरी तरह शूषण के लिए तैयार नहीं थी।
एक दिन, ऋषि क्रोध प्रजापति ने नींद में एक गहरी गड़ाहट देखी और उसे खुदाई के लिए निर्देशित किया। ऋषि खुदाई करने पर उन्होंने एक सुंदर मात्स्य (मछली) को पाया, जो जल में जीने के लिए असाधारण थी। मात्स्य ने ऋषि से कहा कि भविष्य में ब्रह्मा का एक प्रलय होने वाला है और संसार के सभी प्राणियों को उस समय इस गतिमान जल में उबारना चाहिए।
मात्स्य ने ऋषि को बताया कि ब्रह्मा ने उन्हें विशेष जहाज बनाने के लिए कहा है, जिसे प्रलय के समय सभी प्राणियों को उबारने के लिए उपयोग किया जा सकेगा। उस जहाज को राजा सत्यव्रत नामक ऋषि ने रचा है। इसके बाद मात्स्य ने ऋषि को विशेष जहाज के साथ समुद्र के ऊपर चलने की सलाह दी। मात्स्यावतार में भगवान विष्णु ने ऋषि सत्यव्रत को नये प्राणियों को जीवित रखने के लिए उबारा और उन्हें प्रलय से बचाया।
प्रलय के दौरान मात्स्यावतार में भगवान विष्णु ने ऋषि सत्यव्रत को वेदों की ज्ञान प्राप्ति, सृष्टि के रहस्यों की जानकारी और धर्म की शिक्षा दी। विष्णु के मात्स्यावतार के बाद से ही सत्ययुग की शुरुआत हुई और मानवता की पुनर्जीवन हुई। यह अवतार मानवता के लिए ज्ञान और उद्धार का प्रतीक है और विष्णु भक्तों के बीच बहुत महत्वपूर्ण है।
2.भगवान विष्णु कूर्मावतार कथा:-
कूर्मावतार भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक है। कूर्मावतार में भगवान विष्णु एक कछुवा रूप धारण करते हैं। इस अवतार की कथा के अनुसार, ब्रह्मा और विष्णु के बीच एक विवाद उठा कि कौन सबसे महान है। ब्रह्मा ने कहा कि वह सृष्टि का सृजन करता है और विष्णु उसे पालता है, इसलिए वह सबसे महान है।
विष्णु ने इस विवाद को समाप्त करने के लिए एक योजना बनाई। वह ब्रह्मा और उसके बाकी देवताओं को संग्रह करके कहने का निर्णय लिया कि वह एक खेद पेड़ की खेती करेगा और वे दोनों इस कार्य में सहायता करेंगे।
यज्ञ के बाद, भगवान विष्णु कछुए के रूप में परिवर्तित हुए और शिर्ष नीचे कर ब्रह्मा और देवताओं ने शरण ली। उन्होंने कहा कि वह खेद पेड़ की खेती करेगा, लेकिन इसके लिए एक मंथन की आवश्यकता होगी। उन्होंने अपनी पूछ को मंथन स्थल के रूप में बनाया और मंथन के लिए शेषनाग (सर्प) को बुलाया।
मंथन के दौरान शेषनाग ने अपनी पूछ को पर्वत में बाँध दिया और उसे समुद्र में स्थिर कर दिया। तब वह दोनों दिशाओं में विकसित होने वाले हाथी जल पाए और उन्होंने एक खेद पेड़ उगाने के लिए खेद को समुद्र में गड़ा दिया।
मंथन के दौरान शेषनाग बहुत थक गया और उसे सहारा चाहिए था। भगवान विष्णु ने खुद उसे सहारा देने के लिए अपने बाएं हाथ से समुद्र को सहलाया। इस रूप में, विष्णु के कूर्मावतार ने संसार को संतुलित रखने के लिए मदद की और संजीवनी भी प्राप्त की।
कूर्मावतार की कथा से हमें यह सिखाया जाता है कि भगवान सभी प्राणियों की मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं और उनका धर्म संसार की संतुलन की रक्षा करना है।
3.भगवान विष्णु वराहावतार कथा:-
विष्णु भगवान के अवतारों में एक महत्वपूर्ण अवतार है वराहावतार, जिसमें विष्णु भगवान एक वराह (सूअर) के रूप में प्रकट हुए थे। वराहावतार की कथा हिंदू पुराणों, विशेषकर विष्णु पुराण और भागवत पुराण में प्रस्तुत है। इस अवतार की कथा के अनुसार:
कथा के अनुसार, एक समय परमेश्वर श्रीहरि (विष्णु भगवान) ने स्वर्ग में बैठे हुए देवताओं की शिकायत सुनी। वे बताते थे कि दैत्य राजा हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को अपने वश में कर लिया है और समुद्र में छिपाया हुआ नीलकंठ महाकालपुरी को उठा लिया है। देवताएं पृथ्वी को पुनर्स्थापित करने के लिए भगवान विष्णु से आह्वान कर रही थीं।
विष्णु भगवान ने देवताओं की याचना सुनी और उन्होंने कहा कि वे एक नया रूप धारण करके पृथ्वी पर आएंगे और हिरण्याक्ष को मारेंगे और पृथ्वी को उसके सही स्थान पर स्थापित करेंगे। विष्णु भगवान ने अपने अवतार के रूप में वराह (सूअर) को चुना, क्योंकि वराह पृथ्वी के अंतरिक्ष से भी घुस सकता था।
वराहावतार की कथा के अनुसार, विष्णु भगवान ने वराह रूप धारण करके समुद्र में गए और हिरण्याक्ष को उसके गुप्त स्थान से बाहर लाने के लिए अगर पृथ्वी को सहारा दिया। उन्होंने उसे नारायणी नदी के पास रखा और समुद्र के साथ लड़ाई करने के लिए हिरण्याक्ष को चुना।
हिरण्याक्ष ने वराह के आकर्षण को देखकर उसे पकड़ लिया और उसे बंद कर दिया। इसके बाद वराह भूमि के नीचे जा गिरा और उसने अपने बाहु और नाक के सहारे भूमि को ऊपर उठाया। भूमि उठने के बाद वराह ने हिरण्याक्ष के साथ महायुद्ध किया और उसे मार डाला।
वराहावतार के द्वारा विष्णु भगवान ने पृथ्वी को उसके स्थान पर स्थापित कर दिया और देवताओं की याचना को पूरा किया। इसके बाद विष्णु भगवान ने अपना वराह रूप छोड़ दिया और पृथ्वी पर अपने वामन अवतार में उभरे।
यहीं तक वराहावतार की कथा होती है।
4.भगवान थाविष्णु नरसिंहावतार कथा:-
भगवान विष्णु के दसवें अवतार के रूप में नरसिंह अवतार एक महत्वपूर्ण कथा है। यह कथा हिंदू पुराणों, विष्णु पुराण और भागवत पुराण में वर्णित है। इस कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने इस अवतार में मनुष्य और सिंह के रूप में प्रकट हुए।
कथा के अनुसार, एक समय परम भक्त प्रह्लाद नामक एक बालक था, जो भगवान विष्णु का भक्त था। प्रह्लाद का पिता हिरण्यकशिपु एक दुष्ट राजा था और उसने विष्णु भक्ति के खिलाफ कठोर विरोध किया। हिरण्यकशिपु को प्रह्लाद की भक्ति से बहुत नाराजगी हुई और वह अपने पुत्र को भगवान के नाम का निर्देश देता है। इसके बावजूद, प्रह्लाद ने भगवान की भक्ति करना जारी रखा।
हिरण्यकशिपु नारसिंह की वराह अवतार की मृत्यु से डरते थे, क्योंकि वह अपने द्वारा उसे दिया गया वर अनवरत रूप से उसे मारने के लिए तत्पर था। इसलिए, उसने प्रह्लाद से पूछा कि भगवान कहां है। प्रह्लाद ने उसे बताया कि भगवान हर जगह हैं, और जब वह उसे आपत्ति देता है, तो भगवान नरसिंह अवतार के रूप में प्रकट होंगे।
इसके बाद हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद के कहे अनुसार, विष्णु के सभी वरणों की पूजा की, लेकिन जब वह नरसिंह वरण की पूजा करने लगा, तो वहां से एक शोर आया। यह शोर उसे अपने गढ़ के अंदर से सुनाई देता है। हिरण्यकशिपु ने देखा कि वहां से नरसिंह अवतार के रूप में भगवान उभर आए हैं।
नरसिंह भगवान ने हिरण्यकशिपु की सभी सेना को नष्ट कर दिया और उसे गढ़ के बाहर खींचा। उन्होंने हिरण्यकशिपु को पटक कर मर डाला, और इसे सामरिक भगवान के रूप में जीता गया। इस प्रकार, नरसिंह अवतार द्वारा भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की सुरक्षा की और दुष्टता को नष्ट कर दिया।
यह कथा भगवान विष्णु की शक्ति, सदा धर्म के पक्ष में खड़े होने का संकेत करती है और दुष्टों को अन्याय के खिलाफ लड़ने का प्रेरणा देती है।
5.भगवान विष्णु वामनावतार कथा:-
वामनावतार भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक है। यह कथा पुराणों में विस्तारपूर्वक वर्णित है और इसे विष्णु पुराण में विशेष रूप से दर्शाया गया है। वामनावतार की कथा निम्नलिखित रूप से है:
किसी समय, देवताओं और असुरों के बीच द्वापर युग में युद्ध हो रहा था। असुरों के राजा बाली अत्यंत महान शक्तिशाली था और देवताओं को नियंत्रण में रख लिया था। देवताओं के राजा इंद्र ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी और उन्हें असुरों के विरुद्ध संग्राम करने के लिए उत्तेजित किया।
भगवान विष्णु ने इंद्र की प्रार्थना स्वीकार की और वामन रूप धारण कर आए। वामन रूप में उन्होंने ब्रह्मिण् प्रेतेंद्र नामक ब्राह्मण के घर में आवास किया। वह बहुत छोटा दिखते थे, लेकिन उनकी दिव्यता बहुत अद्भुत थी।
एक दिन, बाली राजा ब्राह्मण के घर गए और अनुदान के लिए कहा। वामन रूप विष्णु ने बाली को कहा कि वह उन्हें इतनी जगह दे जहां उनका एक पाँच कदम में छू सके। बाली ने इस विचार को हँसते हुए स्वीकार कर दिया, क्योंकि उन्हें वामन के छोटे स्वरूप का आंशिक अनुमान भी नहीं था।
यह देखकर, वामन रूप विष्णु ने अप्रत्याशित रूप से विस्तार लिया और उनका आकार बड़ा हो गया। उन्होंने अपने पांचवें कदम से पूरा स्वर्ग जगह ले ली, दूसरे कदम से पृथ्वी को छू लिया और तीसरे कदम से अस्तित्व में आए।
इस समय, बाली ने समझ लिया कि वह वामन रूप में भगवान विष्णु हैं और उनकी प्रार्थना का उत्तर होने के लिए वे आए हैं। उन्होंने अपना सिर झुकाया और वामन रूप विष्णु ने उन्हें आशीर्वाद दिया।
वामन रूप विष्णु का उद्देश्य यह था कि वह बाली को संयम और धर्म के मार्ग पर लाएं और देवताओं को उनकी स्थिति पुनर्स्थापित करें। यह कथा भगवान विष्णु के न्यायपूर्ण और दयालु स्वरूप को प्रकट करती है और धर्म के महत्व को समझाती है।
नोट:-
पोस्ट अधिक बड़ी होने के कारण हमने इसे दो भागो में बाटा है पहेले भाग में हमने भगवान विष्णु के पांच अवतारों को कवर किया है और बाकी के पांच अवतारों को हमने अगले भाग पार्ट-2 में कवर किया है कृपया अगले भाग को जरुर पढ़े ,और अपने धर्म और भगवान के बारे में जादा से जादा जाने।
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